Gokaruna Nidhi - Introduction

भूमिका
वे धर्मात्मा विद्वान् लोग धन्य हैं, जो ईश्‍वर के गुण, कर्म्म, स्वभाव, अभिप्राय, सृष्‍टि-क्रम, प्रत्यक्षादि प्रमाण और आप्‍तों के आचार से अविरुद्ध चलके सब संसार को सुख पहुँचाते हैं । और शोक है उन पर जो कि इनसे विरुद्ध स्वार्थी दयाहीन होकर जगत् में हानि करने के लिये वर्त्तमान हैं । पूजनीय जन वे हैं जो अपनी हानि होती हो तो भी सब के हित के करने में अपना तन, मन, धन लगाते हैं । और तिरस्करणीय वे हैं जो अपने ही लाभ में सन्तुष्‍ट रहकर सबके सुखों का नाश करते हैं ।

ऐसा सृष्‍टि में कौन मनुष्य होगा जो सुख और दुःख को स्वयं न मानता हो ? क्या ऐसा कोई भी मनुष्‍य है कि जिसके गले को काटे वा रक्षा करे, वह दुःख और सुख को अनुभव न करे ? जब सब को लाभ और सुख में ही प्रसन्नता है, तो विना अपराध किसी प्राणी का प्राणवियोग करके अपना पोषण करना यह सत्पुरुषों के सामने निन्द्य कर्म क्यों न होवे? सर्वशक्तिमान् जगदीश्‍वर इस सृष्‍टि में मनुष्यों के आत्माओं में अपनी दया और न्याय को प्रकाशित करे कि जिससे ये सब दया और न्याययुक्त होकर सर्वदा सर्वोपकारक काम करें, और स्वार्थपन से पक्षपातयुक्त होकर कृपापात्र गाय आदि पशुओं का विनाश न करें, कि जिससे दुग्ध आदि पदार्थों और खेती आदि क्रिया की सिद्धि से युक्त होकर सब मनुष्य आनन्द में रहें ।

इस ग्रन्थ में जो कुछ अधिक, न्यून वा अयुक्त लेख हुआ हो उसको बुद्धिमान लोग इस ग्रन्थ के तात्पर्य के अनुकूल कर लेवें । धार्मिक विद्वानों की यही योग्यता है कि वक्ता के वचन और ग्रन्थकर्त्ता के अभिप्राय के अनुसार ही समझ लेते हैं । यह ग्रन्थ इसी अभिप्राय से रचा गया है कि जिससे गौ आदि पशु जहां तक सामर्थ्य हो बचाये जावें और उनके बचाने से दूध, घी और खेती के बढ़ने से सब को सुख बढ़ता रहे । परमात्मा कृपा करे कि यह अभीष्‍ट शीघ्र सिद्ध हो ।

इस ग्रन्थ में तीन प्रकरण हैं - एक समीक्षा, दूसरा नियम और तीसरा उपनियम । इन को ध्यान दे पक्षपात छोड़ विचार के राजा तथा प्रजा यथावत् उपयोग में लावें कि जिससे दोनों के लिये सुख बढ़ता ही रहे ।


॥इति भूमिका॥

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