इस सभा के नियम
१ - सब विश्व को
विविध सुख पहुँचाना इस सभा का मुख्य उद्देश्य है, किसी की हानि करना प्रयोजन नहीं ।
२ - जो जो पदार्थ सृष्टिक्रमानुकूल जिस जिस प्रकार से अधिक उपकार में आवे, उस उस से आप्ताभिप्रायानुसार यथायोग्य सर्वहित सिद्ध करना इस सभा का परम पुरुषार्थ है ।
३- जिस जिस कर्म्म से बहुत हानि और थोड़ा लाभ हो, उस उस को सभा कर्त्तव्य नहीं समझती ।
४ - जो जो मनुष्य इस परमहितकारी कार्य में, तन, मन, धन से प्रयत्न और सहायता करे, वह वह इस सभा में प्रतिष्ठा के योग्य होवे ।
५ - जो कि यह कार्य्य सर्वहितकारी है, इसलिये यह सभा भूगोलस्थ मनुष्य जाति से सहायता की पूरी आशा रखती है ।
६ - जो जो सभा देश-देशान्तर और द्वीप-द्वीपान्तर में परोपकार ही करना अभीष्ट रखती है, वह-वह इस सभा की सहायकारिणी समझी जाती है ।
७ - जो जो जन राजनीति वा प्रजा के अभीष्ट से विरुद्ध, स्वार्थी, क्रोधी और अविद्यादि रोगों से प्रमत्त होकर राजा और प्रजा के लिये अनिष्ट कर्म्म करे, वह वह इस सभा का सम्बन्धी न समझा जावे ।
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